
क्या आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है?
अगर हाँ, तो यकीन मानिए — आप अकेले नहीं हैं।
जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो माता-पिता का दिल परेशान हो उठता है। दिन-रात यही सोच सताती है कि “आख़िर क्या वजह है?”
कभी सर्दी, कभी खांसी, तो कभी बुखार… और हम हर बार यही सोचते हैं कि अबकी बार इसे कैसे जल्दी ठीक करें।
पर क्या आपने कभी सोचा है कि बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है तो उसके पीछे केवल मौसम या बाहरी संक्रमण ही नहीं, बल्कि हमारी कुछ रोज़मर्रा की आदतें भी ज़िम्मेदार हो सकती हैं?
इस लेख में मैं अपनी उस सच्ची अनुभूति को साझा कर रही हूँ जो हर माँ की तरह मैंने भी महसूस की —
क्या वजहें थीं जो मेरे बच्चे को बार-बार बीमार बना रही थीं?
मैंने क्या छोटे-छोटे बदलाव किए जिससे उसका स्वास्थ्य सुधरने लगा?
और कैसे भक्ति और आत्मिक शांति ने न केवल मुझे, बल्कि मेरे बच्चे को भी भीतर से मजबूत किया।
बच्चों के बार-बार बीमार पड़ने के पीछे मुख्य कारण
जब मेरा बच्चा बार-बार बीमार पड़ता था, तो मैं बहुत घबरा जाती थी। कभी जुकाम, कभी बुखार, कभी पेट दर्द। शुरुआत में लगा ये सामान्य है, लेकिन जब ये लगातार होने लगा, तब मैंने इसके पीछे के कारणों को समझना शुरू किया।
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो यकीन मानिए, आप अकेले नहीं हैं। मैंने भी वही महसूस किया जो आप कर रही हैं। चलिए जानें वे मुख्य कारण जिनकी वजह से बच्चे बार-बार बीमार हो सकते हैं:
कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता (Weak Immunity)
जब मेरा बच्चा छोटा था, तब मैंने देखा कि हर मौसम बदलते ही उसे सर्दी-जुकाम हो जाता था। डॉक्टर ने बताया कि 5 साल की उम्र तक बच्चों की इम्यूनिटी पूरी तरह विकसित नहीं होती। अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो ये उसके शरीर की कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता का संकेत हो सकता है।
👉 मैंने धीरे-धीरे ध्यान दिया कि उसे घर का पौष्टिक खाना, फल और समय पर नींद मिल रही है या नहीं। यह पहला कदम था इम्यूनिटी बढ़ाने की ओर।
पोषण में कमी होने से बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है।
शुरुआत में मैंने भी अनजाने में कुछ गड़बड़ियां कीं। बाहर का जंक फूड, चॉकलेट्स और डिब्बाबंद स्नैक्स मेरे बच्चे की पहली पसंद थे। लेकिन बाद में समझ आया कि अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो हो सकता है कि उसके आहार में विटामिन A, C, D, आयरन और जिंक की कमी हो।
👉 अब मैं सुनिश्चित करती हूँ कि उसके खाने में ताजा सब्जियां, दालें और मौसमी फल ज़रूर शामिल हों।
साफ-सफाई में लापरवाही
बच्चों को हर चीज़ छूने की आदत होती है — मिट्टी, दरवाजे, खिलौने। अगर हाथ न धोए जाएँ, नाखून लंबे रहें या कपड़े गंदे हों, तो संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
मैंने खुद अनुभव किया कि जब मैंने उसे हाथ धोने और साफ़-सुथरा रहने की आदत डलवाई, तो बीमार पड़ने की घटनाएं कम होने लगीं। अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो साफ-सफाई की आदतों की समीक्षा ज़रूर करें।
बाहर का अस्वास्थ्यकर भोजन
शुरुआत में मेरे बच्चे को स्कूल के पास मिलने वाले गोलगप्पे और आइसक्रीम बहुत पसंद थे। कई बार तो मैं भी मना नहीं कर पाई। लेकिन इसका असर उसकी सेहत पर पड़ा। जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो बाहर के खाने से दूरी बनाना बेहद ज़रूरी हो जाता है।
👉 मैंने घर पर ही हेल्दी स्नैक्स बनाना शुरू किया और धीरे-धीरे उसे बाहर के खाने से हटाया।
नींद की कमी
क्या आपका बच्चा देर रात तक मोबाइल या टीवी देखता है? मैंने ये गलती की थी — उसे कभी-कभी देर रात तक कार्टून देखने देती थी। लेकिन बाद में समझ आया कि अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो उसकी नींद की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना चाहिए।
👉 अब मैं उसकी सोने और उठने की टाइमिंग फिक्स रखती हूँ। उसका मूड और स्वास्थ्य, दोनों बेहतर हुए हैं।
बार-बार दवाइयों का सेवन
बच्चों को हर बार हल्का बुखार या खांसी आने पर तुरंत दवा देना एक आम गलती है, जो मैंने भी की। लेकिन बाद में डॉक्टर ने बताया कि इससे उनकी इम्यूनिटी और भी कमजोर हो जाती है।
👉 अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो हर बार दवा देना समाधान नहीं है। हमें उनकी प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने पर ज़ोर देना चाहिए।
मानसिक तनाव और डर से बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है।
आजकल के बच्चे भी तनाव में होते हैं — पढ़ाई का दबाव, स्कूल की प्रतिस्पर्धा, माता-पिता की उम्मीदें। मैंने खुद महसूस किया कि जब मैंने अपने बच्चे से प्यार से बात करनी शुरू की, तो उसकी बीमारियाँ कम हो गईं।
👉 अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो कभी बैठकर उसका मन टटोलिए। शायद उसे सिर्फ आपका साथ और प्यार चाहिए।
मेरा अनुभव
मेरे लिए ये सफर आसान नहीं था। कई बार डर लगा, कई बार खुद पर भी गुस्सा आया कि काश पहले समझ जाती। लेकिन एक माँ कभी हार नहीं मानती।
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो सबसे पहले खुद को दोषी न मानें — बल्कि शांत मन से कारणों को पहचानिए और बदलाव की शुरुआत कीजिए।
बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के असरदार उपाय
एक माँ होने के नाते, जब मेरा खुद का बच्चा बार-बार बीमार पड़ता था, तो मेरी रातों की नींद उड़ जाती थी। कई डॉक्टरों के पास भागी, लेकिन धीरे-धीरे समझ आया कि इम्यूनिटी कमजोर है तो हर मौसम, हर वायरस असर करेगा। तब मैंने कुछ छोटे-छोटे उपाय अपनाए, जो आज मैं आपके साथ बाँट रही हूँ।
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें —
संतुलित और पौष्टिक आहार दें
जब मेरा बच्चा बार-बार बीमार पड़ता था, तो सबसे पहले मैंने उसकी थाली पर ध्यान देना शुरू किया। हर दिन उसकी प्लेट में हरी सब्ज़ियाँ, दालें, मोटा अनाज, मौसमी फल और थोड़े से सूखे मेवे ज़रूर रखती हूँ।
आंवला, संतरा, और नींबू जैसे विटामिन C वाले फल इम्यूनिटी के लिए बहुत असरदार होते हैं। अब मैं रोज़ सुबह एक आंवला खाने की आदत डाल रही हूँ, और उसका असर भी दिख रहा है।
आयुर्वेदिक उपाय अपनाएं
एक समय था जब डॉक्टर की दवाइयाँ ही एकमात्र सहारा लगती थीं। लेकिन जब मैंने देखा कि मेरा बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो आयुर्वेद की शरण ली।
अब हल्दी वाला दूध रात को देना मेरी दिनचर्या में शामिल है। साथ ही तुलसी-पानी, गिलोय का काढ़ा जैसे देसी उपाय इम्यूनिटी को धीरे-धीरे मजबूत कर रहे हैं — बिना किसी साइड इफेक्ट के।
सफाई का ध्यान रखें
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो साफ-सफाई को नजरअंदाज न करें। मैं जानती हूँ कि बच्चों को बार-बार हाथ धुलवाना, नाखून कटवाना या नहलाना आसान नहीं होता। लेकिन मैंने इसे एक खेल बना दिया — “चलो हाथ धोने की रेस!”
स्कूल से आने के बाद कपड़े बदलना और नहाना अब मेरे बच्चे के रूटीन में शामिल है।
पर्याप्त नींद दिलाएं
पहले मेरा बच्चा देर रात तक कार्टून देखता था, लेकिन जब बार-बार बीमार पड़ने की वजह समझ आई, तो सोने का समय तय किया। अब रात 9 बजे तक वो बिस्तर पर होता है।
नींद की कमी बच्चों की इम्यूनिटी को बहुत नुकसान पहुँचाती है। इसलिए हर माँ को ये ज़रूर देखना चाहिए कि बच्चा कम से कम 9 से 10 घंटे की गहरी नींद ले।
मानसिक रूप से मजबूत बनाएं
जब मेरा बच्चा बार-बार बीमार पड़ता था, तो मैं सिर्फ उसकी दवाइयों में ही समाधान ढूंढ रही थी। लेकिन असली बदलाव तब आया जब मैंने उसके मन से बात करना शुरू किया।
अब हम रोज़ 10 मिनट ‘बातचीत टाइम’ रखते हैं — जहाँ वो अपना दिन बताता है और मैं सिर्फ सुनती हूँ। इसके साथ ही हम हर शाम थोड़ा योग और गार्डनिंग भी करते हैं।
एक खुश, तनाव-मुक्त बच्चा ही बीमारियों से बेहतर लड़ पाता है।
मेरी सीख
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो घबराएँ नहीं — लेकिन आँखें ज़रूर खोलें। सिर्फ दवाइयों से कुछ नहीं होता, जीवनशैली और भावनात्मक साथ भी उतना ही ज़रूरी है। मैंने जब इन उपायों को अपनाया, तो धीरे-धीरे सुधार दिखने लगा।
भक्ति और इम्यूनिटी: एक अद्भुत संगम
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो सिर्फ शारीरिक उपाय ही नहीं, मानसिक और आत्मिक स्तर पर भी समाधान खोजने की ज़रूरत है। भक्ति और मानसिक शांति का बच्चों के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है — यह बात मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ।
शांति से जुड़ाव = इम्यून सिस्टम मज़बूत
बचपन से ही यदि बच्चों को पूजा-पाठ, ध्यान, और मंत्रजाप जैसे अभ्यासों से जोड़ा जाए, तो उनका मन स्थिर होता है। यह मानसिक स्थिरता सीधा प्रभाव डालती है उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर। जब मन शांत होता है, तो शरीर खुद ही बीमारियों से लड़ने में सक्षम होता है। इसलिए अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो उसे शांति की ओर ले जाएं — सिर्फ दवाइयाँ नहीं, दिव्यता भी ज़रूरी है।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव
मैंने अपने बेटे के साथ यह प्रयोग किया। हर दिन सिर्फ 5 मिनट के लिए मैंने उसे “ॐ सर्वरोग निवारकाय नमः” मंत्र के साथ ध्यान करवाना शुरू किया। शुरुआत में वह बेचैन रहता था, लेकिन कुछ ही हफ्तों में उसका व्यवहार बदलने लगा। उसकी नींद बेहतर हो गई, भावनाएं संतुलित रहीं, और सबसे ख़ुशी की बात – अगर पहले वह महीने में दो बार बीमार पड़ता था, तो अब महीनों तक स्वस्थ रहता है।
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो मेरी यह सलाह है: उसे अध्यात्म से जुड़ने का मौका दें। यह न सिर्फ उसके मन को शांत करता है बल्कि शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति भी देता है।
7 सबसे बड़ी गलतियाँ जो हर माता-पिता करते हैं
- बच्चों को बार-बार जंक फूड देना — बीमारी की खुली दावत
ये बात मैं खुद अपने अनुभव से कह रही हूँ — आजकल की तेज़ ज़िंदगी और समय की कमी में हमने भी कई बार बच्चों की जिद के आगे झुककर उन्हें पिज़्ज़ा, बर्गर या पैकेट वाले स्नैक्स दे दिए। शुरुआत में तो यह एक आसान समाधान लगता है, लेकिन जब आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ने लगे, तब समझ आता है कि यह “सुविधा” कितनी भारी पड़ रही है।
जंक फूड से इम्यूनिटी कमजोर कैसे होती है?
ऐसे खाने में पोषण नहीं, सिर्फ़ स्वाद और तात्कालिक संतुष्टि होती है। फैट, शुगर और प्रिज़र्वेटिव्स की भरमार से बच्चों के शरीर में सूजन बढ़ती है, जिससे आंतों का संतुलन बिगड़ता है और इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ जाता है। नतीजा — बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है।
बार-बार बीमार पड़ने का चक्र
यह एक ऐसा दुष्चक्र है जो बहुत खामोशी से शुरू होता है:
जंक फूड → पेट की परेशानी → संक्रमण → एंटीबायोटिक्स → कमजोर इम्यूनिटी → और बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है।
मैंने ये चक्र अपने बेटे में खुद देखा है — कब वो चॉकलेट और पिज्जा से पेट दर्द और थकावट तक पहुंच गया, पता ही नहीं चला।
- माता-पिता की सबसे आम लेकिन गंभीर भूल
कई बार हम थके हुए होते हैं, भागदौड़ में होते हैं, और बच्चे जब रोते-गुस्साते हैं तो सोचते हैं — “चलो, आज ही तो खा रहा है!” लेकिन वही ‘आज’ धीरे-धीरे ‘हर दिन’ बन जाता है। यही हमारी सबसे बड़ी गलती है, जो नज़रअंदाज़ कर दी जाती है।
क्या करें जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है?
मैंने खुद कुछ छोटे-छोटे लेकिन असरदार बदलाव किए जो आपके लिए भी मददगार हो सकते हैं:
✔ घर पर स्वाद और सेहत का मेल बनाएं
मैंने आलू के चिप्स की जगह भुने मखाने, ओट्स से बनी टिक्कियां और भुने चने देना शुरू किया। थोड़ा-सा सजावट और बच्चों की पसंद का ख्याल रखकर हेल्दी फूड को मज़ेदार बनाया।
✔ ‘जंक डे’ की रणनीति
हमने हफ्ते में एक दिन तय कर लिया जब वो अपनी पसंद की चीज खा सकते हैं — लेकिन सीमित मात्रा में। इससे बच्चों को न पाबंदी महसूस होती है और न ही आदत बनती है।
✔ बच्चों के साथ मिलकर खाना बनाएं
जब मेरा बेटा खुद आटे से रोटी बेलने लगा और उसे चॉकलेट ओट्स लड्डू बनाने में मज़ा आने लगा — तब उसने खाने की अहमियत को समझना शुरू किया।
✔ एक सरल संवाद
हमने बच्चों से ये बात सीधी और सच्ची तरीके से कही — “जो चीज़ जीभ को अच्छी लगती है, वो ज़रूरी नहीं शरीर को भी अच्छी लगे।”
जब भक्ति बनी समाधान — और मेरा घर बना मंदिर
हमारे घर में असली बदलाव तब आया जब हमने भोजन को भोग का रूप देना शुरू किया। हर दिन की थाली भगवान को अर्पित करके सजाई जाती थी, और उसी थाली से बच्चा भी प्रसाद के रूप में खाना खाने लगा।
धीरे-धीरे उसे समझ आने लगा कि जो खाना सच्चे भाव से बना है, वो न सिर्फ शरीर को बल्कि मन को भी स्वस्थ करता है।
हमने उसे ये भी बताया — “जो भोजन भगवान को चढ़ाया जाता है, उसमें सिर्फ पोषण नहीं, एक ऊर्जा होती है — जो मन को शांत और शरीर को मजबूत करती है।”
मेरा अनुभव
मेरा बेटा पहले हर हफ्ते पिज़्ज़ा की ज़िद करता था। लेकिन ‘प्रसाद वाली थाली’ के खेल ने उसकी सोच बदल दी। जब वह खुद अपनी थाली सजाकर भगवान को अर्पण करता, तो उसे वही घर का खाना और भी स्वादिष्ट लगने लगा। अब न उसे पेट की तकलीफ होती है, न बार-बार डॉक्टर के पास जाना पड़ता है।
अंत में मेरी एक बात — भक्ति सिर्फ़ पूजा नहीं, एक जीवनशैली है
भक्ति का सबसे सुंदर रूप यही है कि हम अपने बच्चों को संयम, संतुलन और सच्ची समझ के साथ जीना सिखाएं। अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो सिर्फ़ डॉक्टर नहीं, आपका समय, सच्चा भोजन और शांत मन भी उसकी दवा हो सकते हैं।
2. ठंड लगने पर तुरंत एंटीबायोटिक देने से बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है
माँ होने के नाते मैं समझ सकती हूँ कि जब हमारे बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हैं, तो दिल कितना घबराता है। हल्की सर्दी, खांसी या बुखार होते ही हमें बस एक ही ख्याल आता है — “कुछ ऐसा दे दूं कि तुरंत आराम मिल जाए।”
मैं भी पहले ऐसा ही करती थी — सिरप निकालती, दवा देती, और सोचती कि अब तो सब ठीक हो जाएगा। लेकिन धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि ये जल्दबाज़ी मेरी ही गलती थी।
1️⃣ क्यों नहीं देना चाहिए तुरंत एंटीबायोटिक?
पहली बात — ज़्यादातर बच्चों को जो सर्दी-जुकाम होता है, वो वायरल होता है, बैक्टीरियल नहीं। और एंटीबायोटिक सिर्फ बैक्टीरिया पर असर करती है, वायरस पर नहीं।
मुझे ये तब समझ आया जब डॉक्टर ने कहा – “हर बार दवा से लड़ोगी तो शरीर खुद कब सीखेगा?”
बिना जरूरत एंटीबायोटिक देने से बच्चों के शरीर में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया भी मर जाते हैं।
पाचन शक्ति कमज़ोर होती है, और इम्युनिटी धीरे-धीरे गिरती जाती है।
सबसे बड़ी बात — एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस हो सकता है, यानि भविष्य में जब सच में ज़रूरत हो, तब दवा असर ही नहीं करेगी।
2️⃣ माता-पिता की एक आम मानसिकता — मेरी भी थी
मैं मानती हूँ, हमें अपने बच्चों को तकलीफ में देखना मुश्किल लगता है। लेकिन अक्सर हम जल्दी आराम पाने के चक्कर में बिना डॉक्टर की सलाह के दवा दे देते हैं — ये गलती मैं भी करती रही हूँ।
एक बार मेरी बेटी को हल्की खांसी थी, और मैंने बिना कुछ सोचे सिरप दे दिया। नतीजा — उसका पेट खराब हो गया और फिर 7 दिन तक वो और ज़्यादा बीमार रही। उस दिन मैंने खुद से वादा किया कि अब से पहले डॉक्टर से सलाह लूंगी और खुद से कुछ नहीं दूंगी।
3️⃣ तो फिर क्या करें? मेरे अपनाए आसान और असरदार उपाय
अब जब भी बच्चों को हल्की सर्दी-जुकाम होता है, मैं पहले इन घरेलू नुस्खों से शुरुआत करती हूँ:
तुलसी, अदरक और काली मिर्च वाला काढ़ा
शहद में एक चुटकी हल्दी मिलाकर देना
भाप दिलाना (सिर्फ गर्म पानी का भाप)
गुनगुना पानी पिलाना और खूब आराम कराना
मैंने एक ‘3 दिन का नियम’ बनाया है — अगर 3 दिन में सुधार न हो, तो तभी डॉक्टर के पास जाती हूँ।
4️⃣ बच्चों के शरीर के साथ-साथ मन को भी मज़बूत बनाएं — भक्ति से
एक चीज़ जिसने सबसे ज़्यादा असर डाला, वो थी भक्ति। मैंने अपने बच्चों को रोज़ सोने से पहले ॐ नमः शिवाय और महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण सिखाया।
शुरुआत में उन्हें थोड़ी झिझक हुई, लेकिन मैंने खुद उनके साथ बैठकर जाप किया। आज वो खुद मुझसे कहते हैं — “माँ, मंत्र सुनने से नींद भी जल्दी आती है और अच्छा लगता है।”
भक्ति सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं, वो बच्चों के भीतर की शांति और आत्मबल को जगाती है। जब मन शांत होता है, तो शरीर भी जल्दी ठीक होता है — मैंने इसे खुद महसूस किया है।
5️⃣ मेरा व्यक्तिगत अनुभव — एक माँ की सीख
पहले मैं खुद भी बार-बार दवा देती थी। लेकिन जब मैंने यह समझा कि यह आदत बच्चों की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को खत्म कर रही है, तो मैंने धीरे-धीरे चीजें बदलनी शुरू कीं।
मैंने काढ़े, भाप, आराम, और मंत्र जाप को अपनी दिनचर्या में शामिल किया। एक महीने के अंदर ही मैं फर्क महसूस करने लगी।
अब मेरे बच्चों को अगर बुखार होता भी है, तो वो खुद कहते हैं — “माँ, दवा नहीं… पहले काढ़ा दो।”
निष्कर्ष: एंटीबायोटिक नहीं, आत्मबल और संयम दीजिए
हर बार दवा देना ही समाधान नहीं है।
कभी-कभी थोड़ा धैर्य, थोड़ा भक्ति, और थोड़ा प्राकृतिक उपचार बच्चों के शरीर और आत्मा दोनों को सशक्त बनाते हैं।
हमें चाहिए कि हम खुद भी जागरूक बनें, और अपने बच्चों को दवा पर नहीं, अपने शरीर की ताकत पर भरोसा करना सिखाएं।
3. बच्चों को बाहर खेलने से रोकना — कहीं हम उनके स्वास्थ्य को तो नहीं रोक रहे?
“बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है?”
अगर हां, तो एक बार खुद से पूछिए — क्या आपने कभी उसे खुलकर खेलने दिया है?
आजकल हम मां-बाप बच्चों को अक्सर ये कहते हुए रोक देते हैं —
“मिट्टी में मत खेलो,” “गंदे हो जाओगे,” “धूप लग जाएगी,” “बीमार पड़ जाओगे।”
मैं खुद भी यही करती थी। लेकिन जब मेरा बेटा बार-बार बीमार पड़ने लगा, तब मैंने खुद से सवाल किया — क्या सच में धूल-मिट्टी ही उसके बीमार पड़ने की वजह है? या वो खेलने की आज़ादी छिन जाने की?”
1️⃣ इम्यूनिटी के दुश्मन हम खुद?
बचपन में जब हम खुद मिट्टी में खेलते थे, पेड़ों पर चढ़ते थे, बारिश में भीगते थे — तब हमारी इम्यूनिटी खुद-ब-खुद मजबूत हो जाती थी।
आज हम अपने ही बच्चों को इन सबसे दूर रख रहे हैं।
लेकिन सच ये है कि मिट्टी में मौजूद प्राकृतिक बैक्टीरिया और माइक्रोब्स बच्चों की इम्यूनिटी को मजबूती देते हैं।
जब बच्चा बाहर जाकर खेलता है —
उसे धूप से विटामिन D मिलता है
दौड़ने-कूदने से फेफड़े मज़बूत होते हैं
पसीने के साथ शरीर के टॉक्सिन बाहर निकलते हैं
और सबसे ज़रूरी — उसे खुश रहने की आज़ादी मिलती है।
2️⃣ घर में बंद रखने के साइड इफेक्ट
जब हम बच्चा को खेलने से रोकते हैं तो हम ये नहीं समझते कि हम अनजाने में उसे कई और बीमारियों की तरफ़ ढकेल रहे हैं:
शरीर में कमजोरी
वजन बढ़ना या मोटापा
बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है — कभी सर्दी, कभी खांसी, कभी बुखार
मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, यहां तक कि अकेलापन
3️⃣ माता-पिता का डर — प्यार के नाम पर अनजाना नुक़सान
मैं जानती हूं — हम रोकते हैं क्योंकि हमें डर लगता है। मुझे भी लगता था —
“कहीं चोट न लग जाए”,
“कहीं कोई इन्फेक्शन न हो जाए”,
“कहीं खेलने में पढ़ाई न छूट जाए”
लेकिन सोचिए — क्या ज़्यादा ज़रूरी है?
एक स्वस्थ बच्चा जो ध्यान से पढ़ सके, या बीमार बच्चा जिसे हर महीने डॉक्टर के पास ले जाना पड़े?
4️⃣ समाधान: बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है? खेल से मिलेगा इलाज!
जब मेरा बच्चा बार-बार बीमार पड़ता था, तो डॉक्टर ने ही कहा —
“इसे बाहर भेजिए। धूल-मिट्टी से दूर रखने से इम्यूनिटी कमजोर होती है।”
मैंने क्या किया?
खेलने का टाइम फिक्स कर दिया — शाम 5 से 6
पार्क नहीं था, तो छत पर ही दौड़ लगवाई
मिट्टी में डर लगता था, तो पहले साथ बैठी
खेलकर आने के बाद नहलाया, सफाई सिखाई
धीरे-धीरे वो बीमार पड़ना बंद हो गया।
5️⃣ भक्ति का नजरिया — प्रकृति से जुड़ना भी पूजा है
मैं मानती हूं कि भक्ति सिर्फ मंदिरों में दीप जलाने तक सीमित नहीं है।
जब हम अपने बच्चे को प्रकृति से जोड़ते हैं — मिट्टी, धूप, हवा से परिचित कराते हैं — तब हम असल में उसे प्रभु से जोड़ते हैं।
मैं अपने बेटे को कहती हूं —
“ये धरती माता है, इसकी मिट्टी में खेलना भी पूजा है।”
उसके चेहरे पर जो चमक आती है, वो किसी आरती की लौ से कम नहीं होती।
6️⃣ मेरा अनुभव — मेरा बच्चा और गीता का पाठ
मेरे बेटे को धूल से एलर्जी हो गई थी। एक मां होने के नाते मैं डर गई थी। लेकिन डॉक्टर ने कहा — “इसे अंदर बंद मत करो, बाहर भेजो।”
मैंने धीरे-धीरे उसे बाहर भेजना शुरू किया। रोज़ शाम को उसे भगवद गीता का एक श्लोक सुनाती थी:
“योगः कर्मसु कौशलम्।”
मतलब — “कर्म में ही कौशल है, और वही योग है।”
आज वो न सिर्फ शारीरिक रूप से मज़बूत है, बल्कि मानसिक रूप से भी संतुलित और आत्मविश्वासी है।
निष्कर्ष: खेलने दो, डराओ मत
अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो इसका इलाज सिर्फ दवा नहीं, बल्कि खेल, धूप और खुली हवा भी है।
हम बच्चों की सेहत को दवाओं से ज़्यादा अपने प्यार और समझदारी से सुधार सकते हैं।
मैंने यही किया — और अब आप भी कर सकते हैं।
4. बच्चों को पूरी नींद न मिलने देना: इम्यूनिटी पर सबसे बड़ा वार
कभी आपने महसूस किया है कि जब बच्चा थका हुआ हो या ठीक से सो न पाया हो, तो वो न सिर्फ चिड़चिड़ा हो जाता है बल्कि बहुत जल्दी बीमार भी पड़ने लगता है? मैंने खुद ये अपनी आँखों से देखा है। नींद की कमी बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को चुपचाप कमजोर कर देती है, और हम माता-पिता जाने-अनजाने में ये बड़ी गलती कर बैठते हैं। यही एक छुपी हुई वजह होती है जिसकी वजह से बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है।
💤 1️⃣ बच्चों के लिए नींद क्यों है इतनी जरूरी?
जब बच्चा गहरी नींद में होता है, तब उसका शरीर खुद की मरम्मत करता है।
नई कोशिकाएं (cells) बनती हैं, और जो खराब या थकी हुई होती हैं, उन्हें हटाया जाता है।
सबसे खास बात – इम्यून सिस्टम के लिए ज़रूरी Cytokines नामक प्रोटीन नींद के दौरान ही बनते हैं, जो इंफेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। यानी नींद = नेचुरल इम्यून बूस्टर।
सिर्फ सेहत ही नहीं, अच्छी नींद से बच्चों का दिमाग़ तेज़, याददाश्त बेहतर और मूड खुशमिज़ाज रहता है।
⚠️ 2️⃣ पूरी नींद न मिलने के नुकसान
मैंने जब ध्यान से देखा तो पाया कि नींद पूरी न होने से बच्चों को ये परेशानियाँ होने लगती हैं:
हर हफ्ते जुकाम, खांसी या बुखार आ जाना
बिना बात के चिड़चिड़ापन या गुस्सा
पढ़ाई में मन न लगना
कमजोर इम्यूनिटी और हर समय थकान
😓 3️⃣ माता-पिता की आम लेकिन बड़ी भूल
कई बार हम जाने-अनजाने खुद ही बच्चों की नींद की दुश्मन बन जाते हैं। जैसे कि:
देर रात तक टीवी देखना
मोबाइल पर गेम्स या यूट्यूब वीडियो
स्कूल के लिए सुबह जल्दी उठाना, लेकिन रात को देर से सुलाना
मैं भी इन गलतियों का हिस्सा रह चुकी हूं, लेकिन जब इनका असर बच्चों की सेहत पर दिखा, तब जाकर सच्चाई समझ में आई।
🌙 4️⃣ क्या करें जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है?
ये कुछ बदलाव मैंने अपने घर में किए और मुझे फर्क दिखा:
बच्चों के लिए एक फिक्स रूटीन बनाएं – जैसे रात 9 बजे तक सो जाना और सुबह 6 बजे उठना।
सोने से 1 घंटे पहले मोबाइल, टीवी पूरी तरह बंद कर दें।
कहानी सुनाने की आदत डालें — मेरा बेटा अब खुद कहता है, “मम्मा, आज कौन सी कहानी?”
रात को सोने से पहले गुनगुना दूध ज़रूर दें। उसमें थोड़ा सा हल्दी या केसर डालना इम्यूनिटी के लिए वरदान है।
🔱 5️⃣ भक्ति में छुपा समाधान
मैंने अनुभव किया है कि सिर्फ दवाएं नहीं, भक्ति से भी बच्चों की नींद सुधर सकती है।
रात को सोने से पहले बच्चों को गायत्री मंत्र या “ॐ नमः शिवाय” का जप करवाएं या खुद बोलें। मेरा बेटा पहले इसे बोरिंग कहता था, लेकिन जब उसे खुद महसूस हुआ कि इससे नींद जल्दी और गहरी आती है, तब से वह खुद कहता है — “मम्मा, शिव मंत्र लगाओ।”
ये आदत सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा बन सकती है।
👩👧 6️⃣ मेरा निजी अनुभव
मैंने जब अपने घर में यह सब शुरू किया तो शुरू में बच्चों को टीवी बंद करने में बहुत दिक्कत हुई। लेकिन धीरे-धीरे “ॐ नमः शिवाय” का जप, हल्दी वाला दूध और समय पर सोने की आदत ने कमाल दिखाया।
अब न केवल उनकी नींद बेहतर है, बल्कि वे सुबह जल्दी उठते हैं, स्कूल टाइम पर तैयार होते हैं, और सबसे बड़ी बात — अब बार-बार बीमार नहीं पड़ते।
✅ निष्कर्ष: नींद नहीं तो इम्यूनिटी भी नहीं!
नींद कोई आलस नहीं — ये बच्चों की सेहत का असली टॉनिक है।
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो सबसे पहले उसकी नींद पर ध्यान दीजिए। मैंने ये अपने बच्चों के साथ आजमाया है — आप भी ज़रूर अपनाइए।
5. बच्चों को शारीरिक व्यायाम न कराना: रोग प्रतिरोधक क्षमता का असली दुश्मन
आजकल के बच्चों की ज़िंदगी मोबाइल, टीवी और गेम्स के बीच सिमट कर रह गई है। बाहर खेलने का वक़्त ना तो बच्चों को मिलता है और ना ही हम पैरेंट्स उन्हें बाहर भेजने की हिम्मत जुटा पाते हैं। कहीं चोट लग गई, कहीं गंदे हो गए, बारिश है, ठंडी है… रोज़ कोई न कोई वजह बन ही जाती है।
पर इस बीच जो सबसे बड़ी चीज़ हम खो देते हैं, वो है बच्चों की सेहत और इम्यूनिटी।
🌿 1️⃣ व्यायाम क्यों ज़रूरी है? (एक माँ की नज़र से)
मैंने खुद महसूस किया है कि जब बच्चा रोज़ थोड़ा भी दौड़-भाग करता है, तो उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक होती है।
शरीर का ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है, जिससे इम्यून सेल्स अपना काम अच्छे से करते हैं।
फेफड़े और दिल मज़बूत होते हैं — आजकल की एलर्जी, खांसी-जुकाम, सांस की दिक्कतें इन सबसे थोड़ी राहत मिलती है।
और सबसे बड़ी बात — बच्चे का मूड अच्छा रहता है, वो खुश रहता है।
पसीने के साथ जो टॉक्सिन्स निकलते हैं, वो एक नेचुरल डिटॉक्स है।
मैंने खुद महसूस किया — जब बच्चा पसीना बहाता है, तो वो रात को चैन से सोता है। नींद अच्छी आए तो immunity भी strong रहती है।
🚫 2️⃣ अगर व्यायाम नहीं होता, तो क्या होता है? (जो मैंने अपने बच्चे में देखा)
बच्चा जल्दी थकने लगता है
थोड़ी-सी सीढ़ियां चढ़े और हांफने लगे
बार-बार ज़ुकाम, बुखार या पेट की दिक्कतें
मनोबल कम होना — खेल में रुचि ही नहीं रहना
शरीर भारी-भारी सा लगना
ये सब चीज़ें धीरे-धीरे बच्चों को अंदर से कमजोर कर देती हैं, और हम समझ ही नहीं पाते कि गलती कहां हो रही है।
👩👧👦 3️⃣ माता-पिता की भूमिका — हमारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी
कई बार हम खुद अनजाने में बच्चों की एनर्जी को दबा देते हैं।
“अभी मत खेलो, पढ़ाई करो”
“गर्मी बहुत है, मत भागो”
“बारिश में बाहर मत जाओ, बीमार पड़ जाओगे”
मैंने भी यही किया… लेकिन फिर एहसास हुआ कि बच्चे पढ़ाई से ज़्यादा अनुभव से सीखते हैं। उनका शरीर जब तक सक्रिय नहीं रहेगा, दिमाग भी उतना तेज़ नहीं चलेगा।
💡 4️⃣ जब बच्चा बार-बार बीमार पड़े, तो क्या करें?
हर दिन कम से कम 30 मिनट खेलना ज़रूरी है। चाहे बाहर जाएं या घर पर कुछ करें।
अगर बाहर नहीं भेज सकते, तो घर पर डांस, रस्सी कूद, योगा जैसे मज़ेदार एक्टिविटी कर सकते हैं।
बच्चों के साथ खुद भी शामिल हो जाइए — यही सबसे बड़ा मोटिवेशन होता है उनके लिए।
मैंने देखा है — जब मैंने रस्सी कूदना शुरू किया, तो मेरे बेटे ने भी अपनी रस्सी ढूंढ निकाली।
🙏 5️⃣ भक्ति के साथ समाधान — व्यायाम और मन की शक्ति का मेल
भक्ति सिर्फ मंदिर में बैठकर नहीं होती — जब हम अपने शरीर का आदर करते हैं, वो भी एक तरह की भक्ति है।
मैंने अपने बेटे के साथ सूर्य नमस्कार शुरू किया, लेकिन खाली एक्सरसाइज़ की तरह नहीं — हर स्टेप पर हमने गायत्री मंत्र का उच्चारण किया। इससे उसका ध्यान भी केंद्रित हुआ और शरीर भी एक्टिव हुआ।
और हां, सूरज की किरणों से मिलने वाला विटामिन D तो सबसे बड़ी दवा है इम्यूनिटी के लिए।
🧡 6️⃣ मेरा व्यक्तिगत अनुभव — एक छोटा बदलाव, एक बड़ी जीत
मेरे बेटे को बाहर खेलने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। बस मोबाइल में गेम्स, और दिन भर बैठे-बैठे खाना।
मैंने जब देखा कि उसका शरीर ढीला पड़ने लगा है, तो डर लगने लगा।
फिर एक दिन हमने घर पर ही एक “सूर्य नमस्कार चैलेंज” शुरू किया — जिसमें हर दिन 1 स्टेप और बढ़ाना होता था। साथ में मैंने भी किया।
अब वह खुद सुबह उठकर योगा मैट निकालता है और सूरज को प्रणाम करता है — मोबाइल तो जैसे भूल ही गया है।
आख़िर में — व्यायाम सिर्फ शरीर के लिए नहीं, आत्मा के लिए भी ज़रूरी है
हम बच्चों को जो आदतें आज देंगे, वही उनकी ज़िंदगी का आधार बनेंगी।
बच्चे सीखते हैं देखकर, समझते हैं महसूस करके, और बदलते हैं प्यार से।
तो चलिए, आज से शुरुआत करें। उनके साथ खेलें, हंसें, और उन्हें दिखाएं कि सेहत भी एक भक्ति है — शरीर के मंदिर को स्वस्थ रखना भी पूजा है।
6. बच्चों को पौष्टिक आहार न देना: इम्यूनिटी पर सीधा हमला
मैंने खुद देखा है कि जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो एक माँ के मन में कितनी बेचैनी होती है। उसकी हर छींक, हर बुखार की तपिश, सीधा माँ के दिल तक पहुंचती है। मैं भी इसी दौर से गुज़री हूँ। और तब जाकर समझ आया कि सबसे पहली लड़ाई हमारे अपने किचन से शुरू होती है।
आजकल बच्चों की प्लेट में पोषण नहीं, बल्कि प्रोसेस्ड चीज़ों का कब्ज़ा है — चिप्स, मैगी, रंग-बिरंगे पैकेट्स। स्वाद की ये दुनिया भले ही उन्हें भाए, लेकिन इम्यूनिटी को अंदर से खोखला कर रही है। नतीजा? बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है।
1️⃣ क्यों जरूरी है बच्चों को पौष्टिक आहार देना?
बच्चों का शरीर हर दिन कुछ नया बना रहा होता है — नई कोशिकाएं, नई हड्डियाँ, नया दिमागी विकास। ऐसे में अगर उन्हें सही पोषण न मिले, तो हम उनके भविष्य की नींव खुद कमजोर कर रहे हैं।
प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन्स – ये सिर्फ नाम नहीं, एक माँ की चिंता का कारण हैं।
संतुलित आहार बच्चों को वायरस, इंफेक्शन और मौसमी बीमारियों से बचाने में ढाल की तरह काम करता है।
पढ़ाई में फोकस, सोचने की ताकत, याददाश्त – ये सब अच्छे खानपान से ही जुड़ते हैं।
2️⃣ पौष्टिक आहार न मिलने से क्या होता है?
मेरे अपने बेटे को एक समय हर 15-20 दिन में बुखार, सर्दी या पेट की गड़बड़ी हो जाती थी। डॉक्टर्स ने साफ़ कहा – “मैम, खानपान सुधारिए, दवा तो सिर्फ अस्थायी राहत दे सकती है।”
बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है और उसका मन पढ़ाई-खेल में नहीं लगता।
एनीमिया यानी खून की कमी – खासतौर पर लड़कियों में ये एक छुपा हुआ खतरा बनता जा रहा है।
हड्डियां कमजोर और शरीर थका-थका सा लगता है।
मानसिक विकास की रफ्तार धीमी पड़ने लगती है।
3️⃣ माता-पिता की कुछ आम गलतियां — मैंने भी की थीं
👉 “चलो जल्दी में ये बिस्किट खा लो, फिर स्कूल के लिए लेट हो जाओगे।”
👉 “तुम्हें मैगी पसंद है ना? लो बना दी, लेकिन हरी सब्जी मत मांगना।”
👉 “मैं खुद जब बाहर का खाना खा रही हूं तो बच्चे कैसे मना करेंगे?”
ये तीनों बातें मैंने खुद कही थीं। और फिर जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तब हम सोचते हैं कि आखिर गलती कहां हुई?
4️⃣ क्या करें जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है?
अब जब मैंने सुधार शुरू किया, तो बदलाव भी धीरे-धीरे दिखने लगे। कुछ छोटे लेकिन असरदार कदम:
घर का बना खाना — सादा, सीधा और दिल से बनाया गया।
खाने को रंग-बिरंगा और मजेदार बनाना — जैसे गाजर, मटर, पनीर, दही और चुकंदर से एक ‘हेल्दी थाली’।
सप्लिमेंट्स पर पूरी तरह निर्भर न रहें। असली पोषण तो असली खाने से ही आता है।
मूंगफली, अंडा, बीज, गुड़ — ये छोटे-छोटे सुपरफूड्स रोज की थाली में जगह पाने लगे।
5️⃣ भक्ति से समाधान — आत्मा का पोषण भी ज़रूरी है
मैंने देखा कि बच्चे अगर खाने को पूजा का हिस्सा मानें, तो उनका दृष्टिकोण भी बदलता है। इसलिए अब हम हर भोजन से पहले एक छोटी सी प्रार्थना करते हैं —
“ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हवि:” या “अन्नपूर्णा स्तोत्र” का उच्चारण।
धीरे-धीरे मेरे बच्चे भी समझने लगे कि खाना सिर्फ पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि ईश्वर का प्रसाद है। जब ये भाव आया, तो पैकेट वाला खाना खुद ही फीका लगने लगा।
6️⃣ मेरा अनुभव — माँ से माँ तक एक सच्चा सुझाव
मैंने घर में एक नियम बनाया —
“हर शनिवार को ‘भोग थाली’ — जिसमें कुछ स्पेशल जैसे हलवा-पूड़ी या उनकी पसंद की चीज़ होती, लेकिन एक शर्त के साथ — हफ्ते भर पौष्टिक खाना ज़रूरी।”
साथ ही, बच्चों से हर दिन “ॐ अन्नपूर्णायै नमः” का एक जप करवाया।
आज वही बच्चे मुझसे पूछते हैं — “मम्मी, आज कौन-सा हेल्दी खाना बना है?”
निष्कर्ष:
बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है — तो सबसे पहले एक नज़र उसकी थाली पर डालिए। बदलाव की शुरुआत किचन से कीजिए, दवा की दुकान से नहीं। सही खानपान ही असली रक्षा कवच है।
एक माँ होने के नाते, मैं यही कहूंगी — भोजन से ना सिर्फ शरीर, बल्कि संस्कार भी बनते हैं। और जब भोजन में भक्ति जुड़ जाए, तो शरीर भी स्वस्थ और आत्मा भी शांत रहती है।
7. बच्चों को समय पर डॉक्टर के पास न ले जाना: लापरवाही जो महंगी पड़ सकती है
सच बताऊं तो हम माएं कई बार खुद ही डॉक्टर बन बैठते हैं। बच्चे को खांसी आई, तो हल्दी वाला दूध दे दिया। बुखार हुआ तो सिर पर पट्टी रख दी। और जब कोई कहता है कि “डॉक्टर को दिखा दो”, तो जवाब होता है — “अरे रहने दो, ऐसे तो हर बार होता है, ठीक हो जाएगा।”
मैं खुद भी इसी सोच में फंसी रही, और उसका नतीजा क्या हुआ, वो मैं कभी नहीं भूल सकती।
🔍 क्यों जरूरी है समय पर डॉक्टर से सलाह लेना?
छोटे बच्चों की इम्यूनिटी उतनी मजबूत नहीं होती। कई बार हल्की सर्दी, बुखार या खांसी भी बड़ी बीमारी का रूप ले सकती है।
एक बार सही समय पर डॉक्टर से सलाह मिल जाए, तो बीमारी वहीं रुक जाती है। ना बार-बार दवा देनी पड़ती है, ना बच्चा हर हफ्ते कमजोर पड़ता है।
हम सोचते हैं कि गूगल कर लेंगे या दादी माँ के नुस्खे आजमा लेंगे — लेकिन डॉक्टर का अनुभव और समझ कहीं ज़्यादा सही दिशा दिखाते हैं।
🕐 देरी करने से क्या नुकसान हो सकता है?
मैंने खुद महसूस किया है कि देर करने से नुकसान सिर्फ बच्चे का नहीं होता, पूरा परिवार थक जाता है।
छोटी सी बीमारी गंभीर रूप ले सकती है
बच्चे की इम्यूनिटी और भी कमजोर हो जाती है
मानसिक रूप से बच्चा चिड़चिड़ा हो सकता है
घर का पैसा, समय और मन की शांति सब पर असर पड़ता है
⚠️ पेरेंट्स की आम ग़लतियाँ
अब जब पीछे मुड़कर देखती हूं, तो समझ आता है कि हम कुछ आम गलतियाँ बार-बार करते हैं:
खुद से दवा देना, बिना डॉक्टरी सलाह
एंटीबायोटिक खुद से शुरू कर देना
सोच लेना कि “पहले भी ऐसे हुआ था, अब भी ठीक हो जाएगा”
बच्चों को डॉक्टर से दूर रखना जैसे वहां जाना कोई सज़ा हो
✅ क्या करें जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है?
अब मैंने कुछ नियम बना लिए हैं, जो हर पेरेंट्स को अपनाने चाहिए:
हल्के लक्षण दिखते ही डॉक्टर से फोन या वीडियो कॉल से बात कर लीजिए
ज़रूरत पड़े तो ऑनलाइन कंसल्टेशन का विकल्प भी अपनाएं
बार-बार बीमार पड़ने पर डॉक्टर से कहकर ब्लड टेस्ट या एलर्जी चेक करवाएं
बच्चों को समझाएं कि डॉक्टर के पास जाना डर की बात नहीं, बल्कि समझदारी है
🙏 भक्ति से भी जुड़ी मेरी सोच
मैं भक्ति करने वाली मां हूं। मेरे लिए महामृत्युंजय मंत्र या गायत्री मंत्र का जाप रोज़ की आदत है। लेकिन अब मैंने ये समझा है कि भक्ति और मेडिकल साइंस दोनों साथ चल सकते हैं।
जब भी मैं अपने बेटे को डॉक्टर के पास लेकर जाती हूं, मैं मन ही मन महामृत्युंजय मंत्र का जप करती हूं। इससे मेरा मन शांत रहता है, और मुझे लगता है कि ईश्वर खुद हमारे साथ हैं उस इलाज में।
✨ मेरा अनुभव — एक सीख जो कभी नहीं भूलूंगी
एक बार मेरे बेटे को बुखार था, बस हल्का ही। मैंने सोचा – “काढ़ा बना देती हूं, आराम आ जाएगा।” लेकिन दो दिन बाद हालत ऐसी हो गई कि भागकर डॉक्टर के पास जाना पड़ा। वहां पता चला कि इंफेक्शन काफी फैल चुका था।
उस दिन मैं खुद से बहुत नाराज़ हुई।
अब मैंने मन बना लिया है — भक्ति भी करूंगी, लेकिन डॉक्टर की सलाह को कभी हल्के में नहीं लूंगी।
💬 मेरी आपसे दिल से गुज़ारिश है:
पेरेंट्स होने का मतलब है कि हम समय पर सही फैसला लें। बच्चों की सेहत के साथ कोई भी रिस्क ना लें — भक्ति में भरोसा रखें, लेकिन इलाज में लापरवाही बिल्कुल न करें।
माता-पिता के लिए विशेष सुझाव (Parenting Tips)
जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है तो मेरी मानिए तो हर माता- पिता को कुछ सुझाव मानने चाहिए
- बच्चों की दिनचर्या में संतुलन लाएं। पढ़ाई, खेल, आराम और खानपान का सही तालमेल रखें।
- बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि वे ताजी हवा में रहें और शारीरिक रूप से सक्रिय रहें।
- बच्चों को टीवी और मोबाइल से दूर रखें। इसके बजाय उन्हें किताबें पढ़ने या कहानियाँ सुनाने की आदत डालें।
- बच्चों की भावनाओं का सम्मान करें और उन्हें सुने बिना कोई निष्कर्ष न निकालें।
- हर छोटी उपलब्धि पर बच्चों को प्रोत्साहित करें ताकि उनका आत्मविश्वास बढ़े।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है? क्या यह इम्यून सिस्टम कमजोर होने की निशानी है?
हाँ, जब बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो यह उसके कमजोर इम्यून सिस्टम का संकेत हो सकता है। ऐसे में पोषण, नींद और एक्सपोजर सभी चीज़ों पर ध्यान देना ज़रूरी है। - अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है तो क्या हर बार डॉक्टर को दिखाना जरूरी है?
हर बार नहीं, लेकिन बार-बार बीमार पड़ना अगर आदत बन जाए, तो एक बार पैडियाट्रिक स्पेशलिस्ट से जांच ज़रूरी है। मैंने अपने बच्चे के साथ ऐसा किया था और सही समय पर कदम उठाया। - बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो क्या दवाइयों के बिना घरेलू उपाय कारगर हो सकते हैं?
कुछ मामलों में हाँ, खासकर हल्की सर्दी-खांसी में। मैंने तुलसी का काढ़ा, हल्दी दूध और अदरक का उपयोग किया है और असर देखा है। लेकिन बार-बार बीमार पड़ना हो तो डॉक्टर की सलाह ज़रूरी है। - क्या बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है क्योंकि उसे बाहर खेलने नहीं दिया जाता?
बिलकुल! शरीर को बाहर के वातावरण से लड़ने के लिए exposure चाहिए। मैंने महसूस किया है कि जितना बच्चा बाहर खुले में खेलता है, उतना ही उसकी immunity बेहतर बनती है। - बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है तो क्या हर बार एंटीबायोटिक देना सही है?
नहीं, एंटीबायोटिक का बार-बार इस्तेमाल इम्यूनिटी को और कमजोर बना सकता है। मैंने हमेशा डॉक्टर से पूछकर ही दवा दी, और कई बार सिर्फ आराम और घरेलू उपाय ही काफी रहे। - क्या मौसम बदलने पर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है? इसका समाधान क्या है?
मौसमी बदलाव का असर बच्चों पर जल्दी होता है। मेरा अनुभव कहता है कि अगर आप बच्चा मौसम के हिसाब से कपड़े पहनाएं और खाने-पीने पर ध्यान दें, तो बार-बार बीमार पड़ने की संभावना कम होती है। - बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो क्या उसे स्कूल भेजना बंद कर देना चाहिए?
नहीं, स्कूल ना भेजना कोई समाधान नहीं। मैंने अपने बच्चे के साथ यही सीखा कि school-going children naturally exposed होते हैं, लेकिन strong immunity से वह बीमारियों से जल्दी लड़ सकते हैं। - अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है तो क्या यह किसी एलर्जी की वजह से हो सकता है?
हाँ, कई बार बार-बार बीमार पड़ने का कारण धूल, मौसम या किसी खाने की एलर्जी होती है। मैं अपने बच्चे के खान-पान पर नज़र रखती हूँ और जब भी शक होता है, allergy test करवा लेती हूँ। - बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है तो क्या उसे कुछ खास तरह का खानपान देना चाहिए?
जी हाँ! मैंने अपने घर में हरी सब्ज़ियाँ, मौसमी फल और गर्म पानी को रेगुलर बना दिया है। इससे बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और वे बार-बार बीमार नहीं पड़ते। - क्या बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है तो उसका कारण मानसिक तनाव हो सकता है?
कम ही सही, लेकिन हाँ। बच्चों का मन भी तनाव से गुजरता है – जैसे separation anxiety, exam pressure या किसी बदलाव का डर। मेरा सुझाव है कि उनके साथ प्यार से बात करें और उनकी feelings को समझें।
👉 क्या आप भी तनाव में हैं?
बच्चों की देखभाल, घर की ज़िम्मेदारियाँ और लगातार भाग-दौड़ में हम महिलाएँ खुद को अक्सर भूल जाती हैं। तनाव हमारी सेहत पर गहरा असर डालता है – खासकर वजन बढ़ाने के रूप में। अगर आप सोचती हैं कि खाना कम खा रही हैं फिर भी वजन बढ़ रहा है, तो वजह सिर्फ एक हो सकती है — तनाव।
📌 इस विषय पर मेरी एक खास पोस्ट ज़रूर पढ़ें:
🎯 Stress se Weight Gain in Women – 7 ज़रूरी बातें जो हर महिला को जाननी चाहिए
यह लेख मैंने अपने दिल से लिखा है, एक औरत होकर, हर उस औरत के लिए जो खुद को थकते हुए महसूस करती है लेकिन कभी शिकायत नहीं करती। इसमें बताया गया है कि कैसे तनाव हमारी हार्मोन्स, भूख और नींद को प्रभावित करता है — और हम कैसे इसे संभाल सकती हैं।
🧘♀️ तनाव को हराइए, खुद से प्यार करिए — क्योंकि एक स्वस्थ माँ ही अपने बच्चे को पूरी ताक़त और मुस्कान दे सकती है।
🌟 अंतिम सोच: एक माँ का दिल बोल उठा…
जब मैं अपने बच्चों को रात में चैन की नींद सोते देखती हूं, तो एक अजीब-सी तसल्ली मिलती है — जैसे पूरा दिन सफल हो गया। पहले मैं भी सोचती थी कि नींद तो बस आराम के लिए होती है, लेकिन जब बार-बार बीमार पड़ते बच्चों को देखा, तब समझ आया कि ये नींद ही असली दवा है।
आज जब मेरे घर में सोने से पहले मंत्रों की धीमी ध्वनि गूंजती है, और बच्चे सुकून से सोते हैं, तो लगता है कि मैंने उन्हें सिर्फ अच्छी नींद नहीं दी, बल्कि एक मजबूत जीवनशैली का उपहार दिया है। अगर आप भी चाहते हैं कि आपका बच्चा बार-बार बीमार न पड़े, तो सबसे पहले उसकी नींद को प्राथमिकता दीजिए।
क्योंकि एक सुकून भरी नींद, हर मां के दिल को सबसे गहरी राहत देती है।
📢अब कुछ बदलने का वक़्त है!
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, तो अब सिर्फ दवाओं से नहीं, आदतों से इलाज शुरू कीजिए।
अपने बच्चे के हर दिन को बेहतर बनाना आपके हाथ में है — आज जो बदलाव आप करेंगे, वही कल आपके बच्चे को रोगों से दूर और आत्मबल से भरपूर बनाएगा।
📌 आज से ही एक नई शुरुआत करें:
बेहतर नींद
संतुलित आहार
स्वच्छता की सच्ची समझ
और रोज़ाना थोड़ा-सा भक्ति का साथ
💬 कमेंट करके बताएं — इस पोस्ट ने आपकी सोच में क्या बदला?
📤 इसे उन माता-पिता तक ज़रूर पहुँचाएं, जिनके बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हैं — क्योंकि हो सकता है उन्हें सिर्फ एक सही जानकारी की ज़रूरत हो।
🙏 स्वास्थ्य + संस्कार = भविष्य का उजाला
💖 आज से ही शुरुआत करें — अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है तो अपने बच्चे की सेहत के लिए सिर्फ खाना नहीं, आदतें भी सुधारिए। और याद रखिए, ईश्वर भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है।
🙏 भक्ति के साथ स्वास्थ्य की ओर कदम बढ़ाएं — क्योंकि एक स्वस्थ बच्चा ही भविष्य का उजाला है।
अगर आप भी शांति, उद्देश्य और भक्ति से जुड़ा हुआ कंटेंट पसंद करते हैं —
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वहाँ भी मैंने दिल से जुड़ी कुछ खास बातें और भावनात्मक क्षण साझा किए हैं —
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