
नवरात्रि के चौथे दिन का अपना ही अलग महत्व होता है। इस दिन हम सब माँ दुर्गा के उस स्वरूप की पूजा करते हैं, जिन्होंने पूरे ब्रह्मांड की रचना की – माँ कूष्मांडा। मुझे यह दिन हमेशा बहुत विशेष लगता है। ऐसा लगता है जैसे माँ के इस स्वरूप में सृजन की अद्भुत शक्ति और मातृत्व का गहरा एहसास छिपा है।
जब मैं छोटी थी, घर में नवरात्रि पर हर दिन माँ के अलग-अलग रूपों की पूजा होती थी। लेकिन चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा के समय वातावरण ही बदल जाता था – पूजा की थाली की खुशबू, दीपक की लौ, और माँ के आठ भुजाओं वाले स्वरूप की झलक मन को श्रद्धा और ऊर्जा से भर देती थी।
इस दिन की पूजा न केवल आध्यात्मिक रूप से शांति देती है, बल्कि यह भी याद दिलाती है कि हर नया आरंभ माँ के आशीर्वाद से ही संभव है। इसीलिए मैं हर साल नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा करते समय यही प्रार्थना करती हूँ कि मेरे जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे।
माँ कूष्मांडा का स्वरूप और विशेषताएँ
माँ कूष्मांडा का नाम सुनते ही मन में एक अद्भुत ऊर्जा की लहर दौड़ जाती है। उनका स्वरूप आठ भुजाओं वाला है, इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। वे शेर पर सवार रहती हैं और हर हाथ में अलग-अलग दिव्य आयुध धारण करती हैं।
उनके चेहरे पर जो तेज और मुस्कान है, वह इतनी कोमल और दिव्य लगती है कि लगता है जैसे सृष्टि की हर रचना को उन्होंने अपने आशीर्वाद से जन्म दिया हो। उनके हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, अमृत-पात्र, चक्र और गदा जैसे आयुध होते हैं। ये सभी संकेत करते हैं कि माँ शक्ति के साथ-साथ करुणा और सृजन की प्रतिमूर्ति हैं।
मुझे बचपन से ही उनकी तस्वीर बहुत आकर्षित करती थी। मेरी दादी कहा करती थीं – “कूष्मांडा” नाम इसलिए पड़ा क्योंकि माँ ने अपनी हल्की-सी मुस्कान से ही ब्रह्मांड का निर्माण किया था। यह कहानी सुनकर लगता है कि माँ की मुस्कान में ही सारी सृष्टि की ऊर्जा समाई हुई है।
माँ कूष्मांडा की पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा का अपना अलग ही आनंद और महत्व होता है। इस दिन सुबह-सुबह उठकर घर में एक ताजगी का माहौल बनाना मुझे हमेशा अच्छा लगता है – जैसे पूरा घर माँ की ऊर्जा से भर गया हो।
- सुबह की तैयारी
– सूर्योदय से पहले स्नान कर लें।
– साफ-सुथरे और हल्के रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।
– पूजा स्थल को गंगाजल या साफ जल से शुद्ध करें। - माँ का आसन और कलश स्थापना
– माँ कूष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में रखें।
– एक कलश स्थापित करें जिसमें जल, आम के पत्ते, सुपारी और नारियल रखें। यह कलश माँ की ऊर्जा का प्रतीक होता है। - पूजन सामग्री
– चंदन, रोली, अक्षत, धूप, दीप, सफेद और लाल पुष्प, मौसमी फल।
– माँ को मालपुए और कद्दू विशेष प्रिय माने जाते हैं, इस दिन उन्हें भोग लगाना शुभ होता है। - पूजा विधि
– सबसे पहले दीपक जलाकर माँ का ध्यान करें।
– माँ को चंदन, रोली, अक्षत और पुष्प अर्पित करें।
– फिर माँ का ध्यान करते हुए “ॐ कूष्माण्डायै नमः” मंत्र जपें।
– पूजा के अंत में आरती करें और प्रसाद बाँटें।
जब मैं यह सब करती हूँ तो लगता है जैसे माँ की ऊर्जा घर के हर कोने को पवित्र कर रही हो।
माँ कूष्मांडा की कथा
नवरात्रि के चौथे दिन पूजित माँ कूष्मांडा की कथा पढ़ते या सुनते समय मेरे भीतर एक अलग ही श्रद्धा जाग जाती है। ऐसा लगता है मानो यह केवल एक पुरानी कहानी नहीं बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक सीख है।
पुराणों के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं था – केवल चारों ओर घोर अंधकार था – तब माँ कूष्मांडा ने अपनी दिव्य और हल्की मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड की रचना की। यही कारण है कि उन्हें “सृष्टि की आदिशक्ति” कहा जाता है। ‘कूष्मांडा’ शब्द का अर्थ है – “कु” (थोड़ा) + “उष्म” (ऊर्जा/उष्णता) + “अंड” (ब्रह्मांड)। यानी माँ वह शक्ति हैं जिन्होंने अल्प ऊर्जा से ब्रह्मांड का अंड (बीज) रचा।
माँ का स्वरूप भी बहुत ही अद्भुत है। इन्हें आठ भुजाओं वाली देवी कहा गया है, जिनके हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, माला, अमृत-पात्र, चक्र और गदा सुशोभित रहते हैं। उनका वाहन सिंह है, जो निर्भयता और बल का प्रतीक है।
मेरे घर में जब भी चौथे दिन यह कथा पढ़ी जाती है तो वातावरण स्वतः बदल जाता है। लगता है मानो माँ स्वयं हमारे बीच आकर बैठ गई हों। माँ की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जब भी जीवन में अंधकार हो, तब भीतर की दिव्यता और हल्की-सी मुस्कान भी बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकती है।
कथाओं में यह भी कहा गया है कि माँ कूष्मांडा सूर्यलोक में निवास करती हैं और उनकी ही शक्ति से सूर्य को तेज और जीवनदायिनी ऊर्जा मिलती है। इसीलिए उन्हें “आधारभूत ऊर्जा” माना जाता है।
माँ की उपासना करने वाले साधकों को बल, स्वास्थ्य, समृद्धि, तेज और आध्यात्मिक उन्नति का वरदान प्राप्त होता है। मुझे खुद ऐसा लगता है कि इस दिन विशेष रूप से मन को सकारात्मक रखने, मुस्कुराने और दूसरों में भी ऊर्जा बाँटने का संकल्प लेना चाहिए।
विशेष नियम और फल – माँ कूष्मांडा की पूजा (Day 4)
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की आराधना का खास महत्व है। इस दिन कुछ नियमों और संयम का पालन करने से साधक को आध्यात्मिक शांति और जीवन में स्थिरता मिलती है।
इस दिन क्या-क्या पालन करना चाहिए
सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद ही पूजा करें।
सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
पूजा के दौरान कद्दू (कूष्मांड) या उससे बने व्यंजन का भोग अवश्य लगाएँ।
यथासंभव मौन व्रत रखें या कम से कम मीठे वचनों का उपयोग करें।
माँ के नाम का जप 108 बार “ॐ ऐं क्लीं कूष्मांडा देव्यै नमः” मंत्र के साथ करें।
उपवास / दान / नियम
फलाहार या हल्के आहार का ही सेवन करें।
जरूरतमंदों को कद्दू, गुड़, सफेद कपड़े या अन्न दान करें।
नकारात्मक विचारों और क्रोध से दूर रहें।
झूठ और कपट का त्याग कर दिनभर भक्ति भाव बनाए रखें।
इससे मिलने वाले आध्यात्मिक और व्यावहारिक लाभ
माँ कूष्मांडा की कृपा से आरोग्य, दीर्घायु और ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
मन में शांति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
घर-परिवार में संपन्नता और सौभाग्य का वास होता है।
साधक का सौर मंडल (ऊर्जा क्षेत्र) संतुलित होता है, जिससे स्वास्थ्य और मानसिक शक्ति बढ़ती है।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव
“जब मैंने पहली बार चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा करते हुए ये नियम अपनाए – खासकर मौन व्रत और दान – तो मेरे मन में अद्भुत शांति का अनुभव हुआ। ऐसा लगा जैसे माँ ने सच में मेरा हाथ थाम लिया हो। उसी साल मेरे जीवन में बड़े काम सहजता से बनने लगे। तभी से मैं हर नवरात्रि इस दिन इन नियमों को ज़रूर निभाती हूँ।”
माँ कूष्मांडा के प्रमुख मंत्र
जब मैं चौथे दिन सुबह पूजा के लिए बैठती हूँ तो सबसे पहले माँ कूष्मांडा के इन मंत्रों का जप करती हूँ। इनसे मन में ऊर्जा और सकारात्मकता दोनों महसूस होती है।
ध्यान मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
(मैं हर बार इसे तीन, पाँच या ग्यारह बार जपती हूँ। इसका कंपन वातावरण में हल्की सी ऊर्जा भर देता है।)
स्तुति मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे॥
(इस मंत्र में हम माँ से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे जीवन में शुभता, स्वास्थ्य और समृद्धि लाएँ।)
माँ कूष्मांडा की आरती
चौथे दिन की आरती करते समय मेरे मन में हमेशा यह भाव आता है कि माँ ने ही हमारी पूरी सृष्टि को जन्म दिया है। आरती करते हुए वातावरण में दिव्यता और शांति आ जाती है।
माँ कूष्मांडा आरती
(यह आरती मेरी नानी से सुनी हुई है, हर साल नवरात्रि के चौथे दिन मैं इसे श्रद्धा से गाती हूँ। आप भी इस आरती को नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा के बाद गा सकते हैं।)
आरती – कूष्मांडा माता की
कूष्मांडा जय जग सुखदानी,
भक्तों पर दया करो महारानी।
पिंगला ज्वालामुखी सुहावन,
शाकंभरी माँ भोली भावन।
अनेक नाम, अनेक स्वरूपा,
भक्तों की तुम हो करुणा रूपा।
भीमा पर्वत वास तुम्हारा,
स्वीकारो माँ प्रणाम हमारा।
सबकी सुनती हो जगदंबे,
सुख देती हो माँ अंबे।
तेरे दर्शन को मैं तरसा,
पूर्ण करो अब माँ आशा।
ममता से भरपूर तुम्हारा मन,
सुनो अब भक्त की अरजि बन।
तेरे दर पर आश्रय पाया,
दूर करो माँ संकट आया।
मेरे कारज सिद्ध कर दो,
अपने भंडार से भर दो।
तुम्हें ही ध्याए भक्त तुम्हारा,
शीश झुकाए चरण तुम्हारा।
जय जय कूष्मांडा भवानी,
सुख-समृद्धि दो माँ कल्याणी।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न – माँ कूष्मांडा (Day 4)
चौथे दिन माँ कूष्मांडा को क्या भोग लगाना चाहिए?
माँ कूष्मांडा को कद्दू (कूष्मांड) और उससे बने व्यंजन बहुत प्रिय हैं। इस दिन कद्दू का भोग लगाने से स्वास्थ्य और ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
क्या इस दिन फलाहार करना ज़रूरी है?
हाँ, व्रतधारी फलाहार, दूध या हल्के आहार से दिनभर माँ की आराधना करते हैं। इससे शरीर और मन दोनों शुद्ध रहते हैं।
माँ कूष्मांडा के लिए कौन-सा रंग शुभ माना जाता है?
हल्का हरा या सफेद रंग इस दिन विशेष शुभ होता है। भक्त अक्सर इन्हीं रंगों के वस्त्र पहनकर पूजा करते हैं।
क्या इस दिन दान करना चाहिए?
हाँ, जरूरतमंदों को कद्दू, गुड़, सफेद कपड़े या अन्न दान करने से माँ कूष्मांडा की विशेष कृपा मिलती है।
क्या हर कोई ‘ॐ ऐं क्लीं कूष्मांडा देव्यै नमः’ मंत्र जप सकता है?
जी हाँ, यह सार्वभौमिक मंत्र है। कोई भी श्रद्धा और शुद्ध मन से इस मंत्र का जप कर सकता है।
मेरा अनुभव: इन नियमों का पालन करने से क्या फर्क पड़ता है?
मैंने जब पहली बार इस दिन दान और मौन व्रत को अपनाया, तो मन में अजीब-सी हल्की और सकारात्मक ऊर्जा महसूस हुई। ऐसा लगा जैसे माँ कूष्मांडा ने मेरी प्रार्थना सुन ली हो।
माँ कूष्मांडा की पूजा का सार
नवरात्रि का चौथा दिन हमारे जीवन में नई ऊर्जा, उत्साह और प्रकाश लाने का दिन होता है। माँ कूष्मांडा की उपासना केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा को सकारात्मकता और शक्ति से भरने का माध्यम है। इस दिन व्रत, दान, नियम और भक्ति के साथ जब हम माँ की आराधना करते हैं, तो भीतर से हल्कापन, आत्मविश्वास और मानसिक शांति अनुभव होती है।
मुझे व्यक्तिगत रूप से यह दिन हमेशा प्रेरणा देता है कि छोटी-छोटी चीज़ें – जैसे सादगी से पूजा करना, दान देना, और मन में माँ का नाम जपना – जीवन में बड़े बदलाव ला सकती हैं।
अगर आप भी इस दिन श्रद्धा और नियमों से पूजा करेंगे, तो निश्चित ही माँ कूष्मांडा की कृपा से आपके जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली आएगी।
आप भी माँ कूष्मांडा की कृपा के भागी बनें
अगर इस लेख ने आपको माँ कूष्मांडा की पूजा और नियमों के बारे में नई जानकारी दी है, तो इस नवरात्रि आप भी श्रद्धा और भक्ति के साथ माँ की आराधना करें।
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