
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन मेरे लिए हमेशा बहुत खास रहा है। इस दिन माँ स्कंदमाता की पूजा होती है, जिन्हें मातृत्व और करुणा की देवी माना जाता है। जब भी मैं माँ स्कंदमाता की आराधना करती हूँ, तो मुझे भीतर से एक अलग ही शांति और अपनापन महसूस होता है, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को गोद में लेकर उसे ढांढस बंधा रही हो।
माँ स्कंदमाता अपने पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) को गोद में लेकर सिंह पर विराजमान रहती हैं। उनका यह रूप हमें न केवल मातृत्व की शक्ति और प्रेम का अनुभव कराता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि जब हम अपने कर्तव्यों को निभाते हुए ईश्वर को समर्पित होते हैं, तो जीवन में हर बाधा दूर हो सकती है।
इस दिन की साधना से घर में सुख-शांति आती है और बच्चों के लिए विशेष कल्याणकारी मानी जाती है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि जब भी मैं माँ स्कंदमाता की पूजा करती हूँ, तो घर के वातावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मन बहुत हल्का और संतुलित लगता है।
माँ स्कंदमाता का स्वरूप
माँ स्कंदमाता को नवरात्रि के पाँचवें दिन पूजित किया जाता है। उनका स्वरूप मातृत्व और करुणा का प्रतीक है। माँ सिंह पर विराजमान रहती हैं और अपनी गोद में भगवान कार्तिकेय (स्कंद) को लिए होती हैं। उनके पाँच मुख और चार भुजाएँ मानी जाती हैं।
उनकी दो भुजाएँ कमल के फूल लिए रहती हैं, एक हाथ में भगवान स्कंद (कार्तिकेय) हैं और एक हाथ से भक्तों को वरदान देती हैं। माँ के सिर पर तेजस्वी मुकुट और चेहरे पर सौम्यता तथा करुणा झलकती है। उनके शरीर का रंग स्वर्णिम और प्रकाशमान बताया गया है, जो पूरे वातावरण को दिव्यता से भर देता है।
माँ स्कंदमाता को “कमलवासिनी” भी कहा जाता है क्योंकि वे कमल पर विराजमान रहती हैं और उन्हें कमल के फूल अत्यंत प्रिय हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि जब हम माँ की भक्ति करते हैं तो हमें न केवल ज्ञान और शक्ति मिलती है बल्कि जीवन में करुणा, शांति और संतुलन भी आता है।
मेरे अनुभव में, जब भी मैं माँ स्कंदमाता की छवि को ध्यान में लाती हूँ, तो मन में एक कोमलता और सुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है, जैसे किसी छोटे बच्चे को माँ की गोद में सुकून मिलता है।
माँ स्कंदमाता की पूजा विधि
माँ स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पाँचवें दिन की जाती है। इस दिन का वातावरण कुछ अलग ही दिव्यता लिए होता है — जैसे-जैसे नवरात्रि का मध्य आता है, साधक की साधना भी गहराई पकड़ने लगती है।
पूजा की तैयारी
मैं हमेशा अपने पाठकों को यही सलाह देती हूँ कि पूजा शुरू करने से पहले तैयारी पूरी कर लें। इससे मन शांत रहता है और आराधना में एकाग्रता आती है।
- स्नान और शुद्ध वस्त्र: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ, हल्के या पीले-सफेद रंग के वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थल की शुद्धि: गंगाजल या साफ पानी से पूजा स्थल को पवित्र करें।
- कलश स्थापना: एक कलश स्थापित करें, उसमें स्वच्छ जल, सुपारी, आम के पत्ते और ऊपर नारियल रखें।
- माँ की प्रतिमा/चित्र: माँ स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र को पूजास्थल पर स्थापित करें।
पूजन क्रम
अब पूजा शुरू करने का समय होता है। मैंने जब पहली बार यह पूजा की थी तो सबसे पहले मैंने घंटा बजाकर वातावरण में सकारात्मकता महसूस की थी।
- सबसे पहले दीपक जलाएं।
- माँ स्कंदमाता का ध्यान करते हुए “ॐ देवी स्कंदमातायै नमः” मंत्र का जप करें।
- उन्हें चंदन, अक्षत, रोली, और सिंदूर अर्पित करें।
- कमल के फूल विशेष रूप से प्रिय हैं, इन्हें अवश्य चढ़ाएँ।
- गुड़ और केले का भोग इस दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।
विशेष नियम
– इस दिन साधक को मन, वचन और कर्म से पवित्र रहना चाहिए।
– व्रतधारी केवल फलाहार या दूध का सेवन कर सकते हैं।
– क्रोध, झूठ या किसी प्रकार की हिंसा से बचें।
– यदि संभव हो तो किसी ज़रूरतमंद को गुड़ या केले का दान करें।
मुझे व्यक्तिगत अनुभव से यह लगता है कि जब हम इन नियमों को सच में निष्ठा के साथ अपनाते हैं तो मन की एक अलग ही शांति महसूस होती है।
माँ स्कंदमाता की कथा
माँ स्कंदमाता, माँ दुर्गा के पाँचवें स्वरूप हैं। यह रूप मातृत्व, करुणा और शक्ति – इन तीनों का अद्भुत संगम है।
पुराणों के अनुसार, जब राक्षस तारकासुर के अत्याचारों से धरती और देवता त्रस्त हो गए, तब ब्रह्माजी ने भविष्यवाणी की कि उसका वध केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है।
उस समय भगवान शिव गहन समाधि में थे। देवताओं और ऋषियों के आग्रह पर माँ पार्वती ने कठोर तप किया। वर्षों के तप के बाद उन्होंने शिवजी को प्रसन्न किया और उनसे विवाह किया। विवाह के बाद माँ पार्वती ने पुत्र को जन्म दिया — वही बालक आगे चलकर स्कंद (कार्तिकेय) कहलाए।
जब स्कंद बड़े हुए, तो देवताओं के सेनापति बनकर उन्होंने तारकासुर से युद्ध किया और उसका वध कर दिया। इस तरह समस्त देवताओं और मानव जाति को उस दैत्य से मुक्ति मिली।
इसलिए माँ पार्वती के इस स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाता है — अर्थात भगवान स्कंद की माता।
उनकी आकृति भी इस कथा को दर्शाती है:
वे शेर पर विराजमान होती हैं (साहस और शक्ति का प्रतीक)।
उनके चार हाथ होते हैं — दो हाथों में कमल के पुष्प (भक्ति और शांति का संकेत), एक हाथ में भगवान स्कंद को गोद में धारण करती हैं (मातृत्व और संरक्षण का प्रतीक) और चौथा हाथ भक्तों को वरदान देने के लिए है।
उनका स्वरूप अत्यंत उज्ज्वल, दिव्य और शांत होता है।
मुझे व्यक्तिगत रूप से इस कथा का यह भाग बहुत प्रेरणादायक लगता है कि माँ स्कंदमाता अपने पुत्र को गोद में लेकर भी सम्पूर्ण संसार की रक्षा और कल्याण के लिए तत्पर रहती हैं।
यह हमें सिखाता है कि सच्चा मातृत्व केवल पालन-पोषण तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह समाज और धर्म के लिए भी समर्पित हो सकता है।
माँ स्कंदमाता के मंत्र
नवरात्रि के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता की उपासना से साधक को विशेष शांति और सौभाग्य मिलता है। जब मैं इस दिन का जप करती हूँ तो मन में स्वतः ही माँ का वात्सल्य महसूस होने लगता है।
ध्यान मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
(इस मंत्र का 11 या 21 बार जप करें।)
बीज मंत्र
ॐ देवी स्कंदमातायै नमः॥
(इसका निरंतर जप साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भर देता है।)
माँ स्कंदमाता की आरती
आप सभी के लिए मैंने यहाँ माँ स्कंदमाता की प्रसिद्ध आरती दी है। इसे पूजा के अंत में गाना माँ को अत्यंत प्रिय माना जाता है।
जय स्कंदमाता माँ जय जय स्कंदमाता।
सुख-सम्पत्ति दायिनी, भव-सागर त्राता॥
चार भुजाओं वाली, कमल आसन बैठी।
हाथ में कमल लिए, शिशु कार्तिकेय को गोदी में रखी॥
भक्तों के दुःख हरने वाली, सुख-सम्पत्ति देने वाली।
माँ स्कंदमाता तुम, सबकी लाज बचाने वाली॥
जय स्कंदमाता माँ जय जय स्कंदमाता।
सुख-सम्पत्ति दायिनी, भव-सागर त्राता॥
विशेष नियम और फल
नवरात्रि के पाँचवें दिन जब हम माँ स्कंदमाता की पूजा करते हैं, तो यह सिर्फ एक रिवाज़ नहीं रहता — यह एक भावनात्मक जुड़ाव होता है। मैंने खुद जब इस दिन व्रत और नियम पूरे मन से किए, तो एक अनोखी मानसिक शांति और आत्मविश्वास महसूस हुआ।
क्या-क्या पालन करना चाहिए
मन और वचन की पवित्रता: इस दिन कोई भी नकारात्मक सोच, झूठ या क्रोध से बचें।
व्रत/फलाहार: व्रतधारी सिर्फ फल, दूध या हल्का भोजन करें।
दान का महत्व: गुड़, केले, या पीले वस्त्र का दान इस दिन शुभ फल देता है।
भक्ति पर ध्यान: पूजा के समय सिर्फ माँ का ध्यान करें, मोबाइल या बातचीत से बचें।
इससे मिलने वाले आध्यात्मिक और व्यावहारिक लाभ
– साधक को संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
– घर में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
– मानसिक तनाव और नकारात्मकता दूर होती है।
– व्यवसाय और कामकाज में भी उन्नति महसूस होती है।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव
जब मैंने पहली बार पाँचवें दिन व्रत और दान नियम से किया था, तो घर में एक अजीब सी सकारात्मकता छा गई थी। ऐसा लगा जैसे माँ ने खुद आशीर्वाद दिया हो। इसी वजह से मैं हर साल इस दिन का इंतज़ार करती हूँ।
माँ स्कंदमाता की पूजा किस समय करनी चाहिए?
भोर या सूर्योदय के समय पूजा सबसे शुभ मानी जाती है। यदि संभव हो तो ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके पूजा आरंभ करें।
इस दिन कौन सा रंग पहनना शुभ होता है?
पाँचवें दिन पीला या हल्का पीला (क्रीम/गोल्डन) रंग पहनना शुभ होता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और मन शांत होता है।
माँ स्कंदमाता को कौन-सा भोग अर्पित करना चाहिए?
माँ को केले का भोग विशेष रूप से प्रिय है। साथ ही आप पंचामृत, मिठाई या सूखे मेवे भी अर्पित कर सकते हैं।
व्रत करने वाले इस दिन क्या खा सकते हैं?
फलाहार, दूध, चाय, सूखे मेवे, और सेंधा नमक से बने व्रत के व्यंजन खा सकते हैं। अनाज और नमक (साधारण) वर्जित है।
माँ स्कंदमाता की पूजा से क्या लाभ होते हैं?
– संतान सुख और उनके अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति
– जीवन में शांति और सुख-समृद्धि
– नकारात्मकता और भय से मुक्ति
– कार्यों में सफलता और आत्मविश्वास
क्या इस दिन दान करना जरूरी है?
हाँ, दान पुण्यफल को कई गुना बढ़ा देता है। पीले वस्त्र, गुड़, हल्दी या केले का दान करना विशेष रूप से फलदायी है।
इस दिन कौन सा मंत्र जपना शुभ है?
“ॐ देवी स्कंदमातायै नमः” मंत्र का जप सबसे उत्तम माना गया है। आप इसे 108 बार जप सकते हैं।
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माँ स्कंदमाता की पूजा का सार
नवरात्रि के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता की पूजा हमारे जीवन को संतान-सुख, शांति और सकारात्मकता से भर देती है। यह दिन केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि माँ के मातृत्व भाव को अपने जीवन में उतारने का अवसर भी देता है।
मैंने जब पहली बार पंचम दिवस पर माँ स्कंदमाता की पूजा पूरे नियम से की थी, तो एक अजीब-सी शांति और भरोसा महसूस हुआ। ऐसा लगा जैसे हर कठिन परिस्थिति में माँ का हाथ मेरे सिर पर है। इस दिन की पूजा ने मुझे सिखाया कि धैर्य, करुणा और समर्पण से हर बाधा दूर हो सकती है।
माँ स्कंदमाता हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में चाहे कितनी भी चुनौतियाँ आएँ, माता-पिता का प्रेम, संतानों के लिए बलिदान और सच्चे कर्म ही हमें महान बनाते हैं।
इसलिए पंचम दिवस केवल पूजा का नहीं, बल्कि माँ के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का भी दिन है।
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