
2025 में परशुराम जयंती यह वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना गया है। वे ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों से परिपूर्ण थे। यह दिन उनके जन्मोत्सव के रूप में श्रद्धा, भक्ति और तप का प्रतीक है।
परशुराम जी का जीवन परिचय (Biography of Lord Parshuram) 2025 में परशुराम जयंती
जन्म तिथि: वैशाख शुक्ल तृतीया
जन्म स्थान: रेणुका और ऋषि जमदग्नि के पुत्र
अवतार: भगवान विष्णु के दशावतारों में छठे
प्रमुख गुण: अद्वितीय योद्धा, न्यायप्रिय, तपस्वी
परशुराम जयंती 2025 में कब है?
तिथि: 30 अप्रैल 2025, बुधवार
मुहूर्त:
तृतीया तिथि प्रारंभ: 29 अप्रैल 2025 को रात्रि 11:50 बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 30 अप्रैल 2025 को रात्रि 09:15 बजे
2025 में परशुराम जयंती का धार्मिक महत्व
यह दिन शस्त्र और ज्ञान दोनों की पूजा का प्रतीक है
न्याय, धर्म और शक्ति का संदेश देता है
धर्म की रक्षा के लिए अधर्म से युद्ध का संकल्प
गुरु और तपस्या के महत्व को दर्शाता है
परशुराम जी की प्रमुख कथाएँ (परशुराम जयंती 2025)
सहस्रार्जुन वध: प्रतिशोध की आग और धर्म की जीत
परशुराम की कथाओं में सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली प्रसंग है – सहस्रार्जुन वध। सहस्रार्जुन, हैहय वंश का राजा था और अपने अहंकार व अत्याचार के लिए जाना जाता था। एक बार जब परशुराम जी तपस्या में लीन थे, सहस्रार्जुन ने उनके पिता ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। यह हृदयविदारक घटना उस समय हुई जब ऋषि अपनी पत्नी रेणुका के साथ आश्रम में शांतिपूर्वक रह रहे थे।
जब परशुराम को इस क्रूरता का पता चला, तो उनका क्रोध शांत नहीं रहा। उन्होंने न केवल सहस्रार्जुन का वध किया, बल्कि उसके पुत्रों और अनुयायियों को भी दंड दिया। यह केवल प्रतिशोध नहीं था — यह धर्म की रक्षा के लिए किया गया एक निर्णायक कदम था।
शिक्षा: यह कथा न केवल परशुराम जी के पराक्रम को दर्शाती है, बल्कि उनके अंदर के न्यायप्रिय ब्रह्मतेज को भी उजागर करती है।
पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन करना: 21 बार धर्मयुद्ध का संकल्प
परशुराम की कथाओं में एक विशेष उल्लेख है — जब उन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया। क्यों? क्योंकि उस समय क्षत्रिय राजाओं में अत्याचार और अधर्म व्याप्त हो गया था। उन्होंने धर्म का त्याग कर केवल सत्ता और लोभ के लिए शासन करना शुरू कर दिया था।
ऋषि जमदग्नि की हत्या के बाद, परशुराम ने यह संकल्प लिया कि वे अधर्मी क्षत्रियों का अंत करेंगे। उन्होंने पूरे भारतवर्ष में यात्रा की और 21 बार उन सभी क्षत्रियों का वध किया जो धर्म के मार्ग से भटक चुके थे।
यह कोई जातिगत विद्वेष नहीं था, बल्कि अधर्म के विरुद्ध एक आध्यात्मिक युद्ध था। परशुराम जी ने उन क्षत्रियों को नहीं मारा जो धर्म में आस्था रखते थे, बल्कि केवल उन पर प्रहार किया जो अन्याय और पाप में लिप्त थे।
शिक्षा: यह कथा परशुराम जी के ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज के संतुलन को दर्शाती है, जो आज भी एक प्रेरणा है।
शिव से शस्त्रविद्या की प्राप्ति: परशुराम – शिव के परम शिष्य
परशुराम की कथाओं में एक अत्यंत प्रेरणादायक प्रसंग है — भगवान शिव से उनकी शस्त्र विद्या की दीक्षा। कहा जाता है कि परशुराम जी ने हिमालय की गुफाओं में जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर, शिव ने उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान प्रदान किया।
यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने उन्हें स्वंय परशु नामक दिव्य अस्त्र भेंट किया, जो उनकी पहचान बन गया। वे शिव जी के प्रिय शिष्य बने और उन्होंने अपने जीवन को धर्म की रक्षा में समर्पित कर दिया।
यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि चाहे कोई कितना भी बलशाली क्यों न हो, शिक्षा और गुरु का स्थान सर्वोपरि होता है। परशुराम जी की विनम्रता और गुरु भक्ति आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
शिक्षा:परशुराम की यह कथा युवाओं को सिखाती है कि सच्ची शक्ति केवल हथियारों से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान और गुरुकृपा से आती है।
राम-लक्ष्मण से भेंट: धर्म, विनम्रता और वीरता की परीक्षा
रामायण में एक अद्भुत प्रसंग आता है जब भगवान परशुराम की भेंट भगवान श्रीराम और लक्ष्मण से होती है। यह घटना उस समय की है जब राम ने शिव धनुष को तोड़ा था — जो केवल परमवीरों के लिए था। यह घटना सुनते ही परशुराम वहाँ पहुँचे और क्रोधित होकर राम को चुनौती दी।
यह संवाद केवल दो महायोद्धाओं के बीच की बातचीत नहीं थी, बल्कि यह एक गूढ़ संदेश था — धर्म का पालन, विनम्रता की शक्ति, और अहंकार का त्याग। राम ने अपने उत्तरों में न तो घमंड दिखाया, न डर। उन्होंने शालीनता, मर्यादा और नीति के अनुसार परशुराम से बात की।
यह देखकर परशुराम को न केवल राम के दिव्य स्वरूप का आभास हुआ, बल्कि वे समझ गए कि अब उनका समय बीत चुका है — और नए युग के प्रतिनिधि राम हैं।
शिक्षा:यह कथा बताती है कि विनम्रता सबसे बड़ी वीरता होती है, और सच्चा योद्धा वही होता है जो मर्यादा को महत्व दे।
परशुराम जयंती 2025 व्रत एवं पूजन विधि
व्रत के नियम:
ब्रह्मचर्य और सात्विकता का पालन करें
व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले स्नान करें
भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें
पूजन सामग्री:
तुलसी पत्र, चंदन, फूल, फल, अक्षत, घी का दीपक
पूजन विधि: 2025 में परशुराम जयंती
- गंगाजल से स्नान कर शुद्ध हो जाएं
- व्रत का संकल्प लें
- दीप जलाकर परशुराम मंत्रों का जाप करें
- कथा पढ़ें या सुनें
- भोग अर्पित करें और आरती करें
परशुराम जयंती 2025 और आधुनिक युग
आज भी परशुराम जी का संदेश प्रासंगिक है। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई। धर्म और सत्य की रक्षा के लिए तप और शक्ति दोनों को साथ लेकर चले। समाज को संयम, ज्ञान और साहस का आदर्श दिया।
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FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (परशुराम जयंती 2025)
1: परशुराम जयंती 2025 में कब है?
उत्तर: 30 अप्रैल 2025 को बुधवार के दिन है।
2: क्या परशुराम आज भी जीवित हैं?
उत्तर: मान्यता है कि वे चिरंजीवी हैं और कल्कि अवतार को शस्त्रविद्या सिखाएंगे।
3: क्या अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती एक ही दिन होती है?
उत्तर: हाँ, परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया एक ही दिन होती हैं।
4: परशुराम की पूजा कौन करता है? 2025 में परशुराम जयंती
उत्तर: ब्राह्मण, क्षत्रिय सहित सभी सनातनी श्रद्धा से पूजा करते हैं।
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निष्कर्ष: परशुराम जयंती 2025 का संदेश
परशुराम जयंती केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक चेतना है। यह आत्मबल, धर्मपालन और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का प्रेरणास्रोत है। आइए इस दिन भगवान परशुराम से शक्ति, विवेक और साहस की प्रेरणा लें।
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CTA (Call to Action): परशुराम जयंती
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